जगतार सिंह सिद्धू
अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की आंतरिक समिति ने बैठक कर पद से हटा दिया है। इस फैसले से दुनिया भर में बसे सिख समुदाय में बड़ी हलचल मच गई है। परिस्थितियां इस हद तक बदल गईं कि पिछले साल 2 दिसंबर को अकाल तख्त साहिब की प्राचीर से अलग-अलग अकाली नेताओं को तन्हा करने वाले जत्थेदार पर ही सवाल उठने लगे। और यह सवाल किसी और ने नहीं बल्कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की नेतृत्व टीम ने ही उठाए।
वह भी दिन था जब अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार और अन्य सिंह साहिबान के सामने बड़े-बड़े अकाली नेता कतारबद्ध होकर खड़े थे। इनमें सुखबीर सिंह बादल, बलविंदर सिंह भुंदर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, डॉ. दलजीत सिंह, बीबी जगीर कौर और कई अन्य शामिल थे। अब अकाल तख्त साहिब की प्राचीर से निर्णय सुनाने वालों में ज्ञानी हरप्रीत सिंह पहले ही तख्त दमदमा साहिब के जत्थेदार पद से हट चुके हैं और अब ज्ञानी रघबीर सिंह और उस समय के तख्त केसगढ़ साहिब के जत्थेदार भी पूर्व जत्थेदारों की सूची में आ चुके हैं।
पंथक संस्थाओं और जत्थेबंदियों की अनिश्चितता की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। भले ही उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ है, लेकिन वह स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि इस्तीफा वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। आज की कमेटी की बैठक में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के एक्ट के अनुसार कार्यकारी प्रधान तो नियुक्त कर दिया गया है, लेकिन स्थिति को सुधारने की कोशिशें फिर से सवालों के घेरे में हैं। शिरोमणि अकाली दल के नए प्रधान की नियुक्ति भी आने वाले दिनों में की जाएगी।
अगर अकाल तख्त साहिब की प्राचीर से सुनाए गए फैसले की बात करें तो अब तक न तो भर्ती के लिए बनाई गई सात सदस्यीय कमेटी का कोई निष्कर्ष निकला है और न ही अकाली दल का मौजूदा नेतृत्व पार्टी की भर्ती प्रक्रिया से पीछे हटा है। अब दो दिन पहले भर्ती करने वाली बची हुई पांच सदस्यीय कमेटी द्वारा 18 मार्च को अकाल तख्त साहिब परिसर में बड़े पंथक सम्मेलन की घोषणा की गई थी, उसका क्या होगा? न तो कमेटी को नियुक्त करने वाला जत्थेदार बचा और न ही कमेटी का कन्वीनर धामी पद पर हैं। ऐसे में अकाली दल को कौन मजबूत करेगा? खैर, यह निर्णय पंथ पर छोड़ दिया गया है क्योंकि सदियों से पंथ को कमजोर करने वाले लोग पैदा होते रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों के सपने कभी पूरे नहीं हुए।
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