अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मैनहट्टन की संघीय अदालत ने बड़ा झटका दिया है। अदालत ने उनके लिबरेशन डे टैरिफ प्लान पर रोक लगा दी है और इसे असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट के फैसले में कहा गया कि ट्रंप ने अपने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए यह कदम उठाया, जो अमेरिकी संविधान के अनुरूप नहीं है।
ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ लागू करने के अपने अधिकार को बनाए रखने के लिए कोर्ट से अपील की है। प्रशासन का कहना है कि यह कानूनी फैसला चीन के साथ “असंतुलित” व्यापारिक संघर्ष की दिशा बदल सकता है और भारत-पाकिस्तान जैसे क्षेत्रीय तनावों को पुनर्जनन दे सकता है। प्रशासन ने कोर्ट को बताया कि कई देशों के साथ व्यापारिक वार्ताएं चल रही हैं, और यह मामला “संवेदनशील स्थिति” में है, क्योंकि व्यापार सौदों को अंतिम रूप देने की समय सीमा 7 जुलाई है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अमेरिकी संविधान कांग्रेस को अन्य देशों के साथ वाणिज्य को नियंत्रित करने का विशेष अधिकार देता है, जो राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों से प्रभावित नहीं होता।
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ
2 अप्रैल को ट्रंप ने अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर 10% बेसलाइन टैरिफ लागू किया था, जिसमें चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों पर अधिक दरें थीं, जहां अमेरिका का व्यापार घाटा ज्यादा है। इन टैरिफ्स का उद्देश्य अमेरिकी विनिर्माण क्षमता को पुनर्जनन देना था, लेकिन इसने अमेरिकी वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल मचा दी। एक सप्ताह बाद, कई देश-विशिष्ट टैरिफ्स पर रोक लगाई गई। 12 मई को ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की कि वह चीन पर लगाए गए उच्च टैरिफ्स को अस्थायी रूप से कम करेगा, ताकि लंबी अवधि के व्यापार समझौते पर काम किया जा सके। दोनों पक्ष कम से कम 90 दिनों तक टैरिफ्स में कमी पर सहमत हुए।
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमे
कोर्ट का यह फैसला दो मुकदमों के आधार पर आया है। पहला मुकदमा लिबर्टी जस्टिस सेंटर ने पांच छोटे अमेरिकी व्यवसायों की ओर से दायर किया था, जो टैरिफ प्रभावित देशों से सामान आयात करते हैं। दूसरा मुकदमा 13 अमेरिकी राज्यों ने दायर किया था। इन व्यवसायों का कहना है कि टैरिफ्स ने उनकी व्यापारिक क्षमता को नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा, टैरिफ्स को लेकर कम से कम पांच अन्य कानूनी चुनौतियां अदालतों में लंबित हैं।