अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच विवाद अब कानूनी लड़ाई में बदल गया है। 21 अप्रैल को हार्वर्ड ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ फेडरल कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया है। इस कदम से दोनों के बीच पहले से जारी खींचतान और तेज हो गई है।
मामले की जड़ में है ट्रंप की वह कार्रवाई जिसमें उन्होंने हार्वर्ड को दी जा रही फेडरल फंडिंग को रोक दिया और यूनिवर्सिटी की गतिविधियों पर राजनीतिक निगरानी लगाने की मांग की। ट्रंप का आरोप है कि अमेरिका की कई बड़ी यूनिवर्सिटीज़, खासकर हार्वर्ड, यहूदी विरोधी विचारों को बढ़ावा दे रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा चलता रहा तो यूनिवर्सिटी की टैक्स छूट खत्म की जा सकती है, बजट में कटौती की जाएगी और विदेशी छात्रों के लिए एडमिशन मुश्किल हो सकता है।
हार्वर्ड ने ट्रंप के इन फैसलों को ‘तानाशाही’ करार देते हुए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। यूनिवर्सिटी का कहना है कि सरकार द्वारा फंडिंग रोकना न सिर्फ़ उनके शैक्षणिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप है, बल्कि यह अमेरिकी संविधान के फर्स्ट अमेंडमेंट और फेडरल क़ानूनों का भी उल्लंघन है।
हार्वर्ड की याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रंप सरकार की शर्तें मनमानी हैं और इसका मकसद यूनिवर्सिटी की स्वतंत्रता को नियंत्रित करना है। साथ ही कोर्ट से यह मांग भी की गई है कि सरकार द्वारा लगाई गई फंडिंग की शर्तों को अवैध घोषित किया जाए और हुए नुकसान की भरपाई की जाए।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ’ पर हार्वर्ड को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “हार्वर्ड अब सीखने की जगह नहीं रह गया है। यह एक मज़ाक बन चुका है जो नफरत और मूर्खता सिखाता है, और इसे अब किसी भी फेडरल फंडिंग की पात्रता नहीं होनी चाहिए।”