न्यूज़ डेस्क: 21 नवंबर से रूस की प्रमुख तेल कंपनियों Rosneft और Lukoil पर अमेरिका द्वारा लगाई गई नई पाबंदियों का असर अब भारत के तेल आयात पर साफ दिखाई देने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले दो महीनों में भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद में तेज गिरावट दर्ज की जा सकती है, हालांकि आयात पूरी तरह रुकने की संभावना अभी कम है।
भारत इस वर्ष औसतन 1.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी कच्चा तेल आयात कर रहा है। नवंबर में यह मात्रा बढ़कर 1.8 से 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंचने का अनुमान था, क्योंकि पाबंदियों के लागू होने से पहले भारतीय रिफाइनरियों ने छूट पर ज्यादा कार्गो खरीद लिए थे।
लेकिन दिसंबर और जनवरी में आयात 400,000 बैरल प्रतिदिन तक गिरने की आशंका जताई जा रही है।
युद्ध के बाद पश्चिमी देशों की पाबंदियों और यूरोप से मांग घटने के कारण, रूस ने भारत को बड़ी छूट पर तेल बेचा, जिसके चलते भारत का रूसी तेल आयात 1% से बढ़कर 40% तक पहुंच गया। नवंबर में भी रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बना रहा।
अमेरिकी पाबंदियों के लागू होने के बाद, कई भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी तेल की खरीद अस्थायी रूप से रोक दी है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज, HPCL-मित्तल एनर्जी और मंगलौर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स ने तत्काल आयात बंद कर दिया है।
हालांकि Rosneft समर्थित नयारा एनर्जी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा, क्योंकि वादिनार रिफाइनरी पहले से ही एक पाबंदीशुदा इकाई के तौर पर सूचीबद्ध है और इसका संचालन मुख्य रूप से रूसी कच्चे तेल पर निर्भर है।
ऊर्जा विश्लेषक सुमित रितोलिया का कहना है कि नयारा के अलावा अन्य रिफाइनरियां OFAC-सूचीबद्ध कंपनियों से खरीदने का जोखिम नहीं लेंगी। नए अनुबंधों, सप्लाई रूट, स्वामित्व संरचनाओं और भुगतान तरीकों को अंतिम रूप देने में समय लग सकता है।

