नई दिल्ली, 11 नवंबर, 2025:
सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड की जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं और उत्तर प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि मुख्य आरोपी सुरिंदर कोली के खिलाफ जुटाए गए परिस्थितिजन्य साक्ष्य फॉरेंसिक सबूतों से मेल नहीं खाते, जिससे जांच की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा होता है।
कोर्ट ने कोली के इकबालिया बयान को भी अविश्वसनीय बताया, क्योंकि वह 60 दिनों से अधिक समय तक बिना कानूनी सहायता और मेडिकल जांच के हिरासत में रहा। अदालत ने कहा कि बयान दर्ज करने वाले ट्रायल मजिस्ट्रेट ने भी संकेत दिया था कि कोली पर दबाव डाला गया था।
🔹 सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां:
- कोली का बयान विश्वसनीय नहीं, क्योंकि उसे दबाव में लिया गया।
- फॉरेंसिक सबूतों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों में मेल नहीं।
- अपराध स्थल से मिले चाकू, कुल्हाड़ी या मानव अवशेषों का कोली से कोई संबंध नहीं।
- घर में खून के धब्बे या कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं मिले।
- पुलिस जांच में लापरवाही और देरी से सच्चाई तक पहुंचना कठिन हो गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि जब आरोपी को बाकी मामलों में बरी किया जा चुका है, तो केवल शक के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती। अदालत ने सवाल किया कि “एक अशिक्षित घरेलू नौकर कैसे बिना किसी मेडिकल ट्रेनिंग के शवों को इस तरह काट सकता था?”
अदालत ने जांच एजेंसियों को फटकार लगाते हुए कहा कि “लंबी जांच के बावजूद असली दोषी की पहचान नहीं हो सकी, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
🔹 पृष्ठभूमि:
दिसंबर 2006 में नोएडा के निठारी गांव में मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पास नाले से कई कंकाल बरामद हुए थे।
कोली, जो पंधेर का घरेलू नौकर था, पर हत्या, अपहरण, बलात्कार और सबूत नष्ट करने के 13 मामले दर्ज किए गए।
उसे पहले मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 8 सितंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी पर रोक लगा दी।
कोली को अब तक 13 में से 12 मामलों में बरी किया जा चुका है, और 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने रिंपा हलदार हत्याकांड से जुड़े अंतिम मामले में भी उसे बरी कर दिया, जिससे उसकी जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया है।

